अज्ञातवास की कविताएँ

‘अज्ञातवास की कविताएँ’ अविनाश मिश्र का पहला कविता-संग्रह साहित्य अकादेमी की नवोदय योजना के अंतर्गत प्रकाशित है। यह निश्चय ही समकालीन हिंदी कविता की एक उपलब्धि है। यह उन्हें अपनी पीढ़ी के बेहतर कवि और नुमाइंदा शख़्सियत के रूप में सामने लाता है।

अविनाश अपनी उम्र की सीमाएँ लाँघे बिना लिखते हैं, उनकी कविताएँ अपने समय के भीतर रहती ऐसी कविताएँ हैं जो न बहुत आगे देखती हैं, न बहुत पीछे। वे अपने अगल-बग़ल और सामने से सरोकार रखती हैं, अतीत से यहाँ मतलब निकट अतीत, ख़ुद अपने पे गुज़रा हुआ कुछ है, तब भी इनका खरापन और सदाक़त ऐसी है जो तमाम कड़वाहट और अप्रसन्नता को एक ख़ूबी में बदल देती है। ये पहली नज़र में ही बता देती हैं कि वे असली धातु की बनी हैं। इनकी रोचकता और रूक्षता पाठकीय अभिरुचि और अपेक्षाओं से परे कहीं अपना जीवन जीती है। इसलिए दस-पंद्रह साल बाद भी इनसे वही ध्वनि निकलेगी जैसी आज निकलती है।

अविनाश वर्तमान के कवि हैं, कोई ‘उम्मीद जगाने वाले’ कवि नहीं। उनकी कविता विकासमान नहीं है, यानी वह भविष्य का रियाज़ नहीं है। इन कविताओं को इस अपेक्षा से पढ़ना कि इनसे कवि की संभावनाओं का, भावी दिशा का पता चलेगा, इनके प्रति ग़फ़लत दिखाना होगा। जिस तरह की कविता वह लिख रहे हैं, अपने में काफ़ी और मुकम्मल है—मेधा और तकनीक के स्तर पर उसमें रैखिक, ऊर्ध्वगामी ‘विकास’ एक सीमा तक ही संभव है। इस कवि को लेकर यह कामना करना बेहतर होगा कि उसके काव्य का क्षैतिज विस्तार होता रहे, कि उसकी उपलब्ध अभिरुचि और सहानुभूति का घेरा बढ़े, वह उन इलाक़ों में भी जाए जहाँ जाने का उसे मौक़ा नहीं मिला। हो सकता है कि कवि स्वयं आगे ऐसी कविता न लिखे, वह अपना कवि-स्वभाव बदल दे। पर उसका यह दौर जो इन कविताओं में क़ैद है, ऐसा ही रहेगा। लिहाजा इन्हें इनके ‘अभी’ से घिरकर, इनकी तात्कालिकता और अर्जेंसी में, और इनकी दस्तावेज़ी उपलब्धि को समझते हुए, पढ़ना ही इनका अच्छी तरह साथ निभाना है।

अविनाश मिश्र की कविता जहाँ से भी आती हो, सीधे पाठक की तरफ़ आती है। कुछ ही कविताएँ पढ़कर पता चल जाता है कि वह एक अच्छे और टिकने वाले कवि हैं। कमनीय लगने की इच्छा से रहित। इनकी गढ़न और बर्ताव में एक गांधीवादी क़िस्म की सफ़ाई भी है। वह तिरछी निगाह से नहीं देखते, भाषिक सादगी और किफ़ायतशुआरी से काम लेते हैं, नेपथ्य में मौजूद आवाज़ों का इस्तेमाल नहीं करते। कविता के एक कारीगर के बतौर वह स्वर-बहुलता और भाषिक वैभव के उपलब्ध संसाधनों की खोज भी नहीं करते। सच तो यह है कि अपनी तेज़-तर्रारी, सहज उम्दगी और आत्मविश्वास के बावजूद यह बहुत कम बोलने वाली और बहुत कम दावा पेश करने वाली कविता है। यह अपनी ख़ामोश तबीअत को ढकने के लिए कहीं-कहीं वाचालता का भ्रम पैदा करती है। कभी आक्रामक भी लगती है, ग़ौर से देखिए तो सोग मना रही होती है। पर इसमें भी यह हर क़दम पर अपनी पारदर्शिता और ईमानदारी को साबित करती चलती है। कुल मिलाकर अविनाश की कविता एक कठिन प्रतिज्ञा और अर्जन की कविता है।

असद ज़ैदी

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